वात-पित्त और कफ के दोष को त्रिदोष कहते हैं, कफ और पित्त लगभग एक जैसे होते हैं।
इनके संतुलन बिगड़ने से ही सभी रोग होते हैं, त्रिदोष को संतुलन में रखना पड़ता है।
क्‍या आप जानते हैं कि शरीर में होने वाली कोई भी बीमारी वात-पित्‍त और कफ के बिगड़ने से होती है। अब आप पूछेंगे ये वात-पित्त और कफ क्या होता है? तो हम आपको बता दें कि सिर से लेकर छाती के बीच तक के रोग कफ बिगड़ने से होते हैं। छाती के बीच से लेकर पेट और कमर के अंत तक में होने वाले रोग पित्त बिगड़ने के कारण होते हैं। और कमर से लेकर घुटने और पैरों के अंत तक होने वाले रोग वात बिगड़ने के कारण होते हैं।

 

पित्‍त को संतुलित रख सुधारिये पाचन क्रिया

कफ और पित्त लगभग एक जैसे होते हैं। आम भाषा में नाक से निकलने वाली बलगम को कफ कहते है। कफ थोड़ा गाढ़ा और चिपचिपा होता है। मुंह में से निकलने वाली बलगम को पित्त कहते हैं। ये कम चिपचिपा और द्रव्य जैसा होता है। और शरीर से निकले वाली वायु को वात कहते हैं। ये अदृश्य होती है। इस वात-पित्त और कफ के संतुलन के बिगड़ने से ही सभी रोग होते हैं।

क्‍या होता है वात-पित्‍त और कफ दोष

वास्तव में वात, पित्त, कफ दोष नहीं है बल्कि धातुएं है जो शरीर में मौजूद होती हैं और उसे स्‍वस्‍थ रखती है। जब यही धातुएं दूषित या विषम होकर रोग पैदा करती है, तभी ये दोष कहलाती हैं। इस प्रकार रोगों का कारण वात, पित्त, कफ का असंतुलन है। वात पित्त और कफ के अंसुतलन से पैदा हुई दिक्कत को त्रिदोष कहा जाता है। इस तरह रोग हो जाने पर अस्वस्थ शरीर को पुन: स्वस्थ बनाने के लिए त्रिदोष को संतुलन में लाना पड़ता है।

वात-पित्‍त और कफ दोष मनुष्य की आयु के साथ-साथ अलग ढंग से बढ़ते हें। जैसे बच्चे के पैदा होने से 14 वर्ष की आयु तक कफ रोग जैसे बार-बार खांसी, सर्दी, छींक आना आदि ज्‍यादा होते हैं। 14 वर्ष से 60 साल तक पित्त के रोग जैसे बार-बार पेट दर्द करना, गैस बनना, खट्टी डकारें आना आदि ज्‍यादा होता है। और बाद में यानी बुढ़ापे मे वात के रोग जैसे घुटने और जोड़ो का दर्द सबसे ज्‍यादा होता है। लेकिन आज के समय में स्वास्थ्य के नियमों का पालन न करने, अनुचित आहार, खराब दिनचर्या, एक्‍सरसाइज आदि पर ध्यान न देने तथा विभिन्न प्रकार की आधुनिक सुख-सुविधाओं के चलते वात, पित्त और कफ रोग होते हैं। अगर आप भी इस समस्‍या से परेशान हैं तो आपके इन दोषों को मुंग की छिलके वाली दाल दूर कर सकती है।

वात-पित्‍त और कफ दोष को दूर करती है मूंग की दाल

दालों में सबसे पौष्टिक मूंग की दाल होती है, इसमें विटामिन 'ए', 'बी', 'सी' और 'ई' की भरपूर मात्रा होती है। साथ ही पौटेशियम, आयरन, कैल्शियम मैग्‍नीशियम, कॉपर, फोलेट, राइबोफ्लेविन, फाइबर, फास्फोरस, मैग्नीशिम की मात्रा भी बहुत होती है लेकिन कैलोरी की मात्रा बहुत कम होती है। अगर आप अंकुरित मूंग दाल खाते हैं, तो शरीर में कुल 30 कैलोरी और 1 ग्राम फैट ही पहुंचता है।
मूंग की छिलके वाली दाल को पकाकर यदि शुद्ध देसी घी में हींग-जीरे से छौंककर खाया जाये तो यह वात-पित्‍त और कफ तीनों दोषों को शांत करती है। इस दाल का प्रयोग रोगी व निरोगी दोनों कर सकते हैं। 

  1. सब्जियाँ
  2. तेल
  3. योग
  4. प्राणायाम
  5. स्‍वास्‍थ्‍य नियम
  6. रुद्राक्ष
  7. सौंदर्य चिकित्सा

बिमारियों मे


त्रिदोश वात पित्त और कफ दोष के लक्षण, कारण और उपाय-

वात, पित्त और कफ क्या होतें है :-

हमारे शरीर में तीन दोष वात, पित्त, कफ होतें अगर इनका संतुलन बिगड़ता है तो हम बीमार पड़ जातें हैं इसलिए वात, पित्त, कफ इन तीनो का संतुलन बना रहना बहुत ही आवश्यक है। यह हमारे शरीर के तीनो भागों में बटें होते हैं , शरीर के ऊपर के भाग में कफ होता है | शरीर के मध्य में पित्त होता है ,और शरीर के निकले भाग में वात होता है। कफ और पित्त लगभग एक जैसे होते हैं। आम भाषा मे नाक से निकलने वाली बलगम को कफ कहते हैं। कफ थोड़ा गाढ़ा और चिपचिपा होता है। मुंह मे से निकलने वाली बलगम को पित्त कहते हैं। ये कम चिपचिपा और द्रव्य जैसा होता है। और शरीर से निकले वाली वायु को वात कहते हैं। ये अदृश्य होती है।

वात क्या होता है :- वात पेट के नीचे वाले भाग में होता है वात, पित्त और कफ तीनों में से वात सबसे प्रमुख होता है क्योंकि पित्त और कफ भी वात के साथ सक्रिय होते हैं। शरीर में वायु का प्रमुख स्थान पक्वाशय में होता है और वायु का शरीर में फैल जाना ही वात रोग कहलाता है। हमारे शरीर में वात रोग 5 भागों में हो सकता है जो 5 नामों से जाना जाता है।

वात दोष के पांच भेद :- 

• उदान वायु – यह कण्ठ में होती है।
• अपान वायु – यह बड़ी आंत से मलाशय तक होती है।
• प्राण वायु – यह हृदय या इससे ऊपरी भाग में होती है।
• व्यान वायु – यह पूरे शरीर में होती है।
• समान वायु – यह आमाशय और बड़ी आंत में होती है।

वात दोष के लक्षण :-  जब वात का संतुलन बिगड़ता है तो ऐसे लक्षण व्यक्ति के समाने नजर आते हैं जैसे शरीर पर प्रायः रूखापन , फटा फटा , दुबला पतला, पैरों में विवाई फटना, हथेलियां व ओठ फटना ,  अंग सख्त होना,  शरीर पर नसों का उभार, सर्दी सहन ना होना , काले बाल, रूखे  छोटे केश, कम केस, दाढ़ी मूछ का रूखा होना , उंगलियों के नाखून का रूखा व खुदरा होना, जीभ मैली आवाज कर्कश में भारी, गंभीरता रहित स्वर अधिक बोलना, मुंह सूखता है, मुंह का स्वाद फीका का खराब होना, कभी कभी कम कभी ज्यादा प्यास लगना, मल रूखा झाग युक्त,  मूत्र पतला गंदला रुकावट की शिकायत होना, पसीना कम व बिना गंध वाला पसीना नींद कम आना, जम्हाई आना, सोते समय दांत किटकिटाना, स्वप्न सोते समय आकाश में उड़ने के स्वपन देखना चाल तेज होना, शर्दी बुरी लगती है, शीतल वस्तुएं अप्रिय लगती हैं, गर्म  वस्तुओं की इच्छा होना , मीठे खट्टे नमकीन पदार्थ प्रिय लगते हैं

अन्य लक्षण :-
1. रोगी का पेट फूलने लगता है तथा उसका पेट भारी-भारी सा लगने लगता है।
2. रोगी के शरीर में दर्द रहता है।
3. रोगी का मुंह सूखने लगता है।
4. पीड़ित रोगी के शरीर की त्वचा का रंग मैला सा होने लगता है।
5. पीड़ित रोगी के शरीर में खुश्की तथा रूखापन होने लगता है।

वात दोष से होने वाले रोग :- पैरों में दर्द , पैरों का सुन्न होना , नाखून का फटना, विवाई , पैरों की अस्थि में पीड़ा  , संधियों  में अकड़न  , साईटिका , पंगत्व , गुदा  में  पीड़ा , वृषण  पीड़ा , कमर  दर्द , कुबड़ापन , बौनापन , पीठ अकड़ना , पेट  में ऐठन , घबराहट , ह्रदय  पीड़ा , वक्ष पीड़ा , हाथो  का दर्द, गर्दन, जबड़े , दांतो  में दर्द, ओष्ठ का फटना, गूंगापन , वाणी  दोष , असंबन्ध  बोलना , मुहु  में कसैलापन , मुँहू सूखना , गुदा का बहार आना , लिंग  स्तब्धता , डकार  आना , पेट फूलना ,